अनुमति के बगैर ईंटा बनाना गैरकानूनी है, लेकिन कोरबा में सैकड़ों छोटे- बड़े ईंट भट्टों का संचालन अवैध रूप से किया जा रहा है. इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि राजस्व एवं जंगल की लकड़ी, पानी, मिट्टी, चोरी की बिजली का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है.
विशेष संवाददाता, कोरबा
कोरबा औद्योगिक जिले में इन दिनों अवैध ईंट भट्ठों की बाढ़ सी आई हुई है। कुम्हार जाति को मिले छूट का लाभ उठाते हुए कुछ रसूखदार लोग लाल ईंट का अवैध निर्माण कर मोटी कमाई में जुटे हैं। इतना ही नहीं इन ईंट भट्ठों में चोरी का कोयला और अवैध तरीके से जंगल से काटी गई लकड़ियों का उपयोग भी खुलेआम किया जा रहा है।
जिले के ढ़ेलवाडीह क्षेत्र में लाल ईंट निर्माण में व्यस्त माफियाओं की तूती बोल रही है। उनके द्वारा वन विभाग की लगभग 5 से 6 एकड़ जमीन पर कब्जा कर न केवल भूमि की खुदाई कर ईंट निर्माण के लिए मिट्टी निकाली जा रही है बल्कि लाखों ईंट का निर्माण कर भंडारण भी किया जा रहा है। इस अवैध लाल ईंट कारोबार के लिए वन भूमि पर उगे सैकड़ों बड़े पेड़ों की कटाई भी कर दी गई है, जिसका संज्ञान वन विभाग नहीं ले रहा है। ईंट को पकाने के लिए ईंधन के रूप में भट्ठे पर लाए गए अवैध कोयले की उपलब्धता भी यहां प्रचुर मात्रा में है।
खास बात यह है कि कोरबा जिले में ईंट बनाने के लिए एक भी भट्ठे को मंजूरी नही दी गई है। वावजूद इसके विभिन्न क्षेत्रों में खुलेआम ईंट भट्ठे संचालित हैं और इन भट्ठों से निकले ईंट का उपयोग निज़ी के साथ-साथ शासकीय भवन बनाने में भी किया जा रहा है. जिले मे एक भी गांव या क़स्बा ऐसा नहीं है जहां लाल ईंट का क़ाला करोबार ना किया जा रहा हो.
सूत्रों के मुताबिक ईट बनाने के लिए मिट्टी का अवैध उत्खनन तो किया ही जा रहा है, साथ ही ईंट माफिया ईंट को पकाने के लिए चोरी का कोयला और हरे-भरे जंगल की लकड़ियों के उपयोग से भी परहेज नहीं कर रहे हैं.
ईंट निर्माण कारोबार से जुड़े लोगों की मानें तो ईंट व्यवसाय में काफी मुनाफा है और ईंट के धंधे में हजार से लाख और लाख से दस लाख बनते देर नही लगती। यही कारण है कि सारे शासकीय नियम कानून को ताक पर रख कर अवैध ईंट का भट्ठा संचालित किया जा रहा है. अवैध ईंट भट्ठों के संचालन से राज्य शासन को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है.
कम लागत, ज्यादा मुनाफा.. यही है लाल ईंटों का काला सच
जिले में सक्रिय ईंट भट्ठा संचालक ज्यादा कमाई के लिए सरकार के बनाये हुए नियमों को ताक पर रखने से भी परहेज़ नही कर रहे हैं। इनके संरक्षक बन कर बैठे खनिज विभाग के जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारियों को भी दिन की रौशनी में यह नजर नहीं आ रहा है कि जब जिले में ईंट बनाने की विधि सम्मत अनुमति ही नही है फिर ये ईंटें कहां से और कैसे आ रही हैं।